निजीकरण और नोटबंदी
          भारत में सरकारी निकम्मेपन से निपटने के लिए सरकारी संस्थाओं का निजीकरण कर दिया जाता है. वैसे ही कालाबाज़ारियों को दंड देने की बजाय नोटबंदी कर दी जाती है.
         फिर पूँजीपतियों द्वारा कर्मचारियों का शोषण और देश के संसाधनों का दोहन शुरू होता है. निजीकरण अपने आप में बुरा नहीं है, लेकिन नियामकों की अनदेखी से वह अनियंत्रित हो जाता है
         नोटों का आवागमन भी एक सामान्य वित्तीय प्रक्रिया है, लेकिन उसे सीधे-सीधे काले धन से जोड़कर देखने से एक गहरी समस्या शुरू होती है. भारत में फ़िलहाल सबसे बड़ा नोट ₹500 का है जो कि इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए पर्याप्त नहीं है. कितना ही डिजिटल लेन-देन शुरू हो जाए, नगद को हटाया नहीं जा सकता. ऑनलाइन बैंकिंग में होने वाली धोखाधड़ी के चलते तो बहुत सारे लोग इससे दूर ही रहते हैं. उस समय बड़े नोटों की आवश्यकता बहुत बढ़ जाती है.
         निजीकरण और नोटबंदी यदि बचकाने ढंग से किए जाएँगे, तो इनसे न कभी निकम्मापन मिटना है, न कालाबाज़ारी.